गौ माता आज भी हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हैं
क्या इस तनावयुक्त भागदौड़ भरी जिंदगी में आपने कभी यह भी सोचा है कि गौ माता हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण पहले रहीं और कितनी आज हैं। आज के तनावयुक्त भागदौड़ भरी इस जिंदगी में आइए जानते हैं गऊ माता के बारे में वह सभी महत्वपूर्ण बातें जिन्हें जानने की आवश्यकता आज प्रत्येक भारतीय हीं नहीं बल्कि दुनिया के अन्य लोगों को भी है ।
गाय का दूध कई पोषक तत्वों से भरपूर
गाय का दूध कई पोषक तत्वों से भरपूर – हिंदू धर्म में गौ माता को “माता” की उपाधि दी गई है। सनातन धर्म का पालन करने वाले उन्हें न केवल पूजनीय मानते हैं, बल्कि उनके जीवन में प्राचीन काल से हीं गौमाता के दूध, गोबर और गोमूत्र का भी विशेष महत्व है। गाय का दूध कई पोषक तत्वों जैसे कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन से भरपूर होता है यह बात तो हमसब पहले से हीं जानते हैं । लेकिन गौ माता हमारे स्वास्थ्य के अलावा भूमि के स्वास्थ्य का भी रक्षक हैं। गौ माता का गोबर एक अद्भूत जैविक उर्वरक है, जो भूमि की उर्वरता को बढ़ाता है।
गोमूत्र का उपयोग कई आयुर्वेदिक औषधियों में
इसके अलावा, गोमूत्र का उपयोग कई आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से कीटाणुनाशक के रूप में भी काम करता है। भारत एक ऐसा देश है जहां की सभ्यता-संस्कृति में गौ माता हर तरह से रची-बसी हैं। भारतीय सभ्यता-संस्कृति को बनाए रखने के लिए गौ माता वरदान हैं।
मानव के जीवन में गायों की सामाजिक और आर्थिक भूमिका
भारतीय मानव के जीवन में गायों की सामाजिक और आर्थिक भूमिका आज भी वैसे हीं महत्वपूर्ण है। भारत की आत्मा जिन गांवों में बसती है उन सभी ग्रामीण क्षेत्रों में गऊ माता किसानों के लिए आज भी एक मूल्यवान बहुपयोगी संसाधन के रूप में कार्य करती हैं। गांवों में न सिर्फ गऊ उत्पाद, बल्कि गो वंश का श्रम भी कृषि कार्यों में सहायक होता है।
गौ माता का संरक्षण करना अत्यंत आवश्यक
भारत को कभी विश्व गुरू के रूप में तो कभी सोने की चिड़िया के रूप में जाना गया इन सबके आधार में भी गऊ माता की हीं विशेष महिमा थी। गौ माता को कामधेनु की संज्ञा ऐसे हीं नहीं दी गई। इसलिए आज के तनावयुक्त भागदौड़ भरी इस जिंदगी में तनावमुक्त जीवन जीने के लिए भी गौ माता का संरक्षण करना अत्यंत आवश्यक है।
तनावमुक्त जीवन, उत्तम स्वास्थ्य
हम-सबकी जिम्मेदारी है कि हमसब उनके प्रति सम्मान और स्नेह प्रकट करें। जिनके बदले में हमें तनावमुक्त जीवन, उत्तम स्वास्थ्य और धरती माता की उर्वरता के साथ साथ प्रकृति को बनाए रखने का वरदान स्वतः प्राप्त
होता है।
गौ सेवकों को अपमानित नहीं, सम्मानित करने की आवश्यकता
गौ सेवकों को अपमानित नहीं, सम्मानित करने की आवश्यकता क्यों
गौ सेवक, ऐसा व्यक्ति जो गऊ माता की सेवा करता है, उसका सम्मान होना अत्यंत आवश्यक है। आज के समाज में गौ सेवक को अक्सर अपमानित किया जाता है, लेकिन क्या यह सही है। गौ सेवक न केवल गोवंश की रक्षा करते हैं, बल्कि वे हमारे पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति का भी संरक्षण करते हैं। गौ सेवक का कार्य सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर आज के समय में एक ऐसी सेवाभाव है जो हमारे समाज के मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को भी बनाए रखती है। जब हम गौ सेवक को सम्मान देते हैं, तो हम उनके इन उत्कृष्ट कार्यों की सराहना भी करते हैं। जो उनके साथ साथ उन सभी के उत्साह को बढ़ाता है जो समाज के प्रति अपने इन सभी वास्तविक और पारंपरिक जिम्मेदारियों को आज भी समझते हैं।
गौ सेवकों का सम्मान क्यों आवश्यक
हमें यह समझना होगा कि गौ सेवकों का अपमान वास्तव में हमारे समाज के वास्तविक मूल्यों और आदर्शों का भी अपमान करना है। हम गौ सेवक से प्रेरित नहीं होते हुए और उल्टे अगर उनका अपमान करते हैं तो यह बात अपनी स्वयं की संस्कृति की नींव को कमजोर करने के बराबर है। आइए, हम यह बात और अच्छी तरह से जानने की कोशिश करते हैं कि गौ सेवकों का सम्मान क्यों आवश्यक है। गौ सेवकों को अपमानित नहीं सम्मानित करने की आवश्यकता क्यों है।
सनातनी मान्यतानुसार मानव के सगी माता से भी बढ़कर गऊ माता
भारत को ऋषि-मुनियों का देश कहा जाता है। न सिर्फ आज का भारत बल्कि जब जब और जहां जहां दुनिया में सनातन का बोलबाला रहा तब तब किसी भी व्यक्ति के माता से भी बढ़कर गऊ माता को माना गया है। यानि गाय को सनातनी मान्यतानुसार मानव के सगी माता से भी बढ़कर गऊ माता की संज्ञा दी गई है।
गऊ माता को बचाने के प्रयास
मान्यता है कि गाय के शरीर में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए सनातन में सगी माता से भी बढ़कर गऊ माता की महिमा बताई गई है। अतः गौ सेवक गऊ को बचाने के लिए मानव को धरने, पकड़ने, मारने और सजा देने का प्रयास नहीं कर रहे, बल्कि वे मानव के लिए उन गऊ माता को बचाने के प्रयास में लगे हैं जिनमें समस्त देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
ऋग्वेद और सामवेद में गऊ माता
जो हजारों वर्षो से मानव के समस्त प्रकृति को बचाने वाली और स्वयं अपने दूध, गोबर और गोमेज से मानव और उनकी प्रकृति का भरण-पोषण करने वाली तथा उन्हें स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने वाली है। जिस वजह से ऋग्वेद और सामवेद में गऊ माता को अघन्या कहा गया है। अघन्या, यानि जिसका वध नहीं किया जा सकता।
गऊ सेवक
फिर भी जो लोग इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं और गोवध, गोकशी करने वालों की सहायता कर रहे हैं या गऊ माता को कत्लखाने तक पहुंचा कर इन सभी बातों की अनदेखी कर रहे हैं। ये गऊ सेवक बस उन्हीं कुछ लोगों के विरूद्ध दिखते हैं, जो केवल पैसे के लिए इतना जघन्य अधर्म और अपराध कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था के सबसे बेहतर विकल्प
गाय के बारे में अच्छी मान्यता को आज भी बल मिलता है तो ऐसा इसलिए कि इस वैज्ञानिक युग में भी गाय के बारे में सनातनी मान्यताओं को नकारे जाने का कोई एक भी प्रमाण नहीं मिल पाया है। गऊ माता की सेवा करने और गौ आधारित कृषि के महत्व की बातों को आज का विज्ञान भी अर्थव्यवस्था के सबसे बेहतर विकल्प के तौर पर देखता है। क्योंकि गौमाता की सेवा और गौ आधारित कृषि की अर्थव्यवस्था मानव को आत्मनिर्भरता प्रदान करने के साथ साथ मानव को उसके मूल प्रकृति के साथ जोड़ती है।
गौ आधारित कृषि व्यवस्था
गौमाता की सेवा के साथ साथ गौ आधारित कृषि की अर्थव्यवस्था, मानव के साथ पूरे प्रकृति की कल्याण करने की एक समुचित व्यवस्था है। जब भारत में स्वर्णकाल था और जब भारत को सोने की चिड़िया कहा गया तब उस भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे प्रमुख आधार भी मात्र एक गौ आधारित कृषि व्यवस्था हीं थी।
सनातनी मान्यताओं में कई खूबियां
मगर जब भारत में स्वर्णकाल के पश्चात बाद में फिर अंधकार युग का भी प्रभाव रहा तब हम केवल सुनी सुनाई बातों के आधार पर भी अपनी पारंपारिक मान्यताओं को छोड़कर नई नई बेबुनियाद बातों से भी, पहले अपनी मान्यताओं और फिर अपने कर्मों को भी एक गलत दिशा देने लगे। जिससे सनातनी मान्यताओं में कई खूबियां होने के बावजूद हम सनातनी भी एक तरह से अंधकार युग में हीं अपना जीवन जीने का अभ्यस्त होते चले गए।
अंधकार युग के बाद भौगोलिक खोजों के कारण दुनिया के लगभग देशों के लोगों को एक दूसरे की आपसी जानकारी की स्वीकारोक्ति की बात भी अच्छी लगने लगी। परिणामस्वरूप एशिया और विशेषकर पश्चिम के लोगों की सभ्यता-संस्कृति का भी और ज्यादा आपसी मेल-जोल या भाईचारा भी विशेष बढ़ने लगा। जिसके दुष्परिणामस्वरूप एशिया समेत विशेषकर यूरोप की अनेक सभ्यताओं के मेल-जोल से उत्पन्न भाईचारे का दुष्प्रभाव भी बढ़ने लगा।
आज के वैज्ञानिक युग की बात
हालांकि अंधकार युग के बाद दुनिया के विकासशील और कई विकसित देशों की तरह भारत में भी आज के इस वैज्ञानिक युग में भी सनातनी मान्यताओं को फिर से बल मिलने लगी है। क्योंकि सनातन की लगभग सभी मान्यताएं वैज्ञानिक आधार हीं लिए हुए हैं। ऐसे में आज के वैज्ञानिक युग की बात करने वाले इस युग में हम सनातन को एक धर्म या सम्प्रदाय के अलावां एक उत्कृष्ट विज्ञान की संज्ञा भी दें तो यह कोई अतिशयोक्ति वाली बात नहीं होगी।
हम कहां से चले थे और अब किस दिशा में जा रहे हैं
स्पष्ट है कि आज वैश्वीकरण के अंधी दौड़ में हम सभी मानव का जीवन इस तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है जिसका दुष्परिणाम भी अंततः हम सभी मानव को हीं भुगतना पड़ रहा है।
विडंबना यह है कि सनातनी मान्यतानुसार गाय के महत्व को समझते हुए कुछ गौ सेवकों द्वारा जहां जहां और जब जब गऊ को बचाने का प्रयास किया जाता है, कि किसी भी तरह से गऊ माता का जीवन और नस्ल बचाया जा सके। उन्हें बीमार और जिंदा रहते कत्लखाने जाने से बचाया जा सके। गोवध, गोकशी को रोका जा सके। तो उल्टे उन्हें बचाने का प्रयास करने वाले गौ सेवकों को हीं दोषी ठहराए जाने की बात भी की जाने लगती है।
जिस बात को अंधकार युग के बाद से कई संस्कृतियों और सभ्यताओं के आपसी मेल-जोल के एक और अति भयंकर दुष्प्रभाव के रूप में भी हम देख सकते हैं। आज जिस तरह से गाय को मारकर अर्थव्यवस्था की मजबूती की बात की जाती है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए इस तरह की स्वीकारोक्ति को समझने की भी आवश्कता है कि आखिर इस तरह की स्वीकारोक्ति की स्वीकार्यता लगातार बढ़ते रहने के और मायने भी क्या हैं। हम कहां से चले थे और अब किस दिशा में जा रहे हैं..।
दुनिया के सभी लोग केवल एक उपभोक्ता
इन सभी बातों की जड़ में जाने से यह ज्ञात होता है कि पश्चिम की सभ्यता-संस्कृति विशेषकर भौतिकतावाद पर हीं आधारित बात करती है। पश्चिम की सभ्यता-संस्कृति मानव की बात के साथ मानव के लिए इस तरह से भौतिकतावाद की बात करती है जैसे पूरी दुनिया केवल एक भौतिकतावाद पर आधारित मात्र एक बाजार ही हो और दुनिया के सभी लोग केवल एक उपभोक्ता मात्र हीं हों।
प्रकृति को बनाए रखने के बिना मानव जीवन
जबकि सनातन एक ऐसे विश्वास की परम्परा है जिसकी जड़ में यह पूरी प्रकृति और श्रृष्टि का कल्याण करना भी है। सनातन मान्यतानुसार समस्त जीवों का कल्याण हीं मानव जीवन का सबसे प्रमुख कर्तव्य और आधार है। आज का विज्ञान भी इस बात से इंकार नहीं करता वह भी यह मानता है कि प्रकृति को बनाए रखने के बिना मानव जीवन को भी बचाया जाना संभव नहीं है।
जबकि इसी बात के महत्व को समझते हुए सनातन मान्यतानुसार प्रकृति में मौजूद सभी प्राणियों के महत्व को उचित स्थान देने की कोशिश में आज से हजारों वर्ष पूर्व सफलता भी हासिल की गई। उसी सफलता के फलस्वरुप गऊ माता की सेवा के महत्व को समझने के साथ साथ गौ आधारित कृषि व्यवस्था को भी अपनाया गया।
प्रकृति को बनाए रखने की भी समुचित बात
गऊ सेवा और गौ आधारित कृषि व्यवस्था का जन्म भारत और विशेषकर सनातनी मान्यता के उन विचारों की बात है जिनमें आध्यात्म के साथ साथ भौतिकतावाद को भी उचित स्थान देने तथा विशेषकर मानव द्वारा अपनी समस्त प्रकृति को बनाए रखने की भी समुचित बात है।
अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का शपथ लें
ऐसे में गौ सेवकों को अपमानित नहीं सम्मानित करने की आवश्यकता क्यों है, इस बात को हम स्वयं समझ सकते हैं। आइए, हम सभी मिलकर गौ सेवकों का सम्मान करें और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का शपथ लें।
हम सनातन के सभी मूल्यों, आदर्शों और परंपराओं के महत्व को समझते
क्योंकि जब हम उन्हें सम्मानित करते हैं, तो हम अपने समाज को एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने का भी कार्य करते हैं। हम सनातन के सभी मूल्यों, आदर्शों और परंपराओं के महत्व को समझते हुए उन्हें बनाए रखने का भी कार्य करते हैं।
गतिविधियां जो गौधाम पांचवाधाम में होती हैं:
चारा: गौधाम पांचवाधाम यहां के गोवंश को उचित पोषण और जैविक चारा प्रदान करती हैं।
आश्रय: गौधाम पांचवाधाम विशेषकर घायल, बीमार और अकाल के दौरान गायों को वो समुचित आश्रय प्रदान करती हैं, जिनकी वो वास्तविक हकदार हैं ।
चिकित्सा देखभाल: गौधाम पांचवाधाम गौशाला गोवंश के लिए टीकाकरण सहित निदान और उपचार शिविर प्रदान करती हैं।
गोवंश की देखभाल: गौधाम पांचवाधाम गौशाला सभी उम्र की गायों की देखभाल करती हैं, जिनमें बूढ़ी, बीमार, दूध न देने वाली और शारीरिक रूप से विकलांग गायें शामिल हैं। साथ ही गौधाम पांचवाधाम यहां निवास करने वाले गोवंश के साथ साथ पूरी गौशाला की भी स्वच्छता बनाए रखती हैं।
रिकॉर्ड रखना: गौधाम पांचवाधाम गौशाला सभी देशी गोवंश की पहचान करती हैं और उनका रिकॉर्ड रखती हैं।
जैविक खेती: गौधाम पांचवाधाम गौशाला जैविक उर्वरकों, पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं और कीटनाशक मुक्त फसलों के उपयोग को प्रोत्साहित करके जैविक खेती को बढ़ावा देती हैं।
बैल प्रशिक्षण: गौधाम पांचवाधाम गौशाला बैलों को खेत जोतने और गाड़ियों में जोतने के लिए प्रशिक्षित करती हैं।
गाय की पूजा: गौधाम पांचवाधाम गौशाला गाय की पूजा की सुविधा देती हैं और सम्मान और करुणा के बारे में आध्यात्मिक शिक्षाओं को बढ़ावा देती हैं।
हिंदू धर्म में, गायों को पवित्र माना जाता है और वे धरती माता का प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि यह दिव्य और पोषण करने वाली माँ देवी का सांसारिक प्रतिनिधि है, जो प्रजनन क्षमता और प्रचुरता का प्रतिनिधित्व करती है। माना जाता है कि उनके दूध का मानव शरीर पर विशेष शुद्धिकरण प्रभाव पड़ता है।
सिंधु घाटी सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथ
सिंधु घाटी सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथ
दुनिया की कई ऐसी पुरानी सभ्यताओं का पत्ता चलता है जो काफी समृद्ध और रहस्यमयी रही हैं। जिन सभ्यताओं की समृद्धि और रहस्यों का विश्लेषण आज का हमारा विज्ञान भी सटीक ढ़ंग से नहीं कर पा रहा। ऐसे में इस दिशा में विज्ञान की सहायता करने के लिए भी इससे जुड़े विषयों पर कई और आवश्यक रिसर्च करने की भी आवश्कता है।
उदाहरण के लिए दुनिया की सबसे पुरानी शहरी संस्कृतियों में से एक सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं, उस शहरी नदी घाटी सभ्यता से ऐसे कई रहस्य जुड़े हुए हैं जिन्हें हम समझकर प्राचीन हिंदू परम्पराओं को भी और ठीक से समझ सकते हैं।
प्रतिमा विज्ञान
सिंधु घाटी सभ्यता की रहस्यमय लिपि
सिंधु घाटी सभ्यता की रहस्यमय लिपि अभी भी अनसुलझी है। खोजी गई कई मुहरें उन प्रतीकों को दर्शाती हैं जो हिंदू प्रतिमा विज्ञान से विशेष मिलते जुलते हैं।
दुनिया की सबसे पुरानी शहरी संस्कृतियों में से एक सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता-संस्कृति भी कहते हैं, – यह एक ऐसी अद्भूत सभ्यता-संस्कृति थी, जो आज से लगभग 2300-1700 ईसा पूर्व मुख्य रूप से सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई इस बात को ज्यादा बल मिलता है। संभव है इस सभ्यता का पतन बाद में धीरे-धीरे अनेक कारणों से हुई हो या एक हीं बार में किसी भारी आपदा के कारण भी हुई हो। क्योंकि इस सभ्यता के अंत के संबंध में कई अलग अलग सिद्धांत प्रस्तुत किये गए हैं। जिनसे किसी भी एक सटीक निष्कर्ष तक आजतक नहीं पहुंचा जा सका है। इस विषय पर कई और आवश्यक रिसर्च करने की अब भी आवश्कता है
हड़प्पा, धोलावीरा और मोहनजोदड़ो
सिंधु घाटी में विकसित हुई दुनिया की इस प्राचीन शहरी सभ्यता के प्रमुख नगर हड़प्पा, धोलावीरा और मोहनजोदड़ो थे। सिंधु नदी घाटी में विकसित हुई इस प्राचीन शहरी सभ्यता से ऐसे कई रहस्य जुड़े हुए हैं जिन्हें जानकर हिंदू परंपराओ के विश्वास के कई आधार का भी पत्ता चलता है।
सभ्यता के पुरातात्विक निष्कर्ष
भले हीं इस बात को ज्यादा बल मिलता है कि आज से लगभग 2300-1700 ईसा पूर्व वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत में फैला यह प्राचीन शहरी समाज फला-फूला हो। लेकिन इसके अवशेष आज भी हिंदू धर्म की जड़ों से जुड़े समृद्ध भौतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने का हीं हमें सुझाव देते हैं। जबकि इस सभ्यता के पुरातात्विक निष्कर्ष से -उन्नत शहरी नियोजन, वास्तुकला, जल निकासी प्रणाली, व्यापार और व्यापारिक नेटवर्क एवं आध्यात्मिक जीवन जीने की परंपराओं के साथ सहस्त्राब्दियों से चली आ रही मान्यताओं और विश्वास की महत्वपूर्ण निरंतरताओं में आई समकालीन त्रुटीयों को समय रहते दूर करते रहने का भी हमें कुछ संकेत मिलता है।
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष और कई हिंदू धर्मग्रंथ
इस तरह से इससे जुड़े कुछ तर्क ये भी हो सकते हैं कि सिंधु घाटी के लोगों की सभी पवित्र प्रथाओं ने प्रारंभिक हिंदू अनुष्ठानों को भी प्रभावित किया होगा। इतनी प्राचीन सभ्यता के अवशेषों के अलावां कुछ जानवरों के प्रति श्रद्धा, पानी का महत्व – ये सभी बातें हिंदू ग्रंथों में हीं विशेष रूप से प्रतिध्वनित होते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष और कई हिंदू धर्मग्रंथ आज भी हमें भारतीय इतिहास की गूढ़ रहस्यों और गौरवशाली अतीत की परंपरा एवं विश्वास के आधार की ओर ले जाती हैं।
एक महत्वपूर्ण सवाल
सिंधु घाटी सभ्यता के धार्मिक और सामाजिक परंपरा एवं विश्वास और कई महत्वपूर्ण हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन कर, हम यह समझ सकते हैं कि हिंदू धर्म की नींव कैसे पड़ी। प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां आज भी हमें उस समय की सोच और आस्था के बारे में बताती हैं। क्या इसमें ऐसे और रहस्य हो सकते हैं जो प्राचीन ज्ञान को आधुनिक हिंदू दर्शन से जोड़ते हैं? यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है।
तो चलिए, हम-सब उस अद्भूत सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथों के रहस्यों की खोज के क्रम में एक एक महत्वपूर्ण कड़ी बनकर कुछ सार्थक निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते हैं। इस क्रम में उन सभी पहलुओं की तलाश करते हैं, जिनसे सिंधु घाटी सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथों की सभी कड़ियों को और ठीक से समझा जा सके।
प्राचीन रहस्य हिंदू विरासत
हम-सब के संयुक्त प्रयासों से इस क्रम में और उत्तर की खोज जारी है और यह आगे भी लगातार ऐसे हीं जारी रहनी चाहिए। जिससे सिंधु घाटी सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथों के प्रति कई लोगों की रूची और बढ़ती है। जैसे हीं हम सिंधु घाटी सभ्यता और हिंदू धर्मग्रंथ से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण रहस्यों का पत्ता लगाते हैं, हम आप-सबको भी इस बात पर विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं कि प्राचीन रहस्य हिंदू विरासत की हमारी समझ को वर्तमान एवं भविष्य में हमसब और कैसे समृद्ध कर सकते हैं।
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इसलिए हमारी प्राचीन संस्कृतियों और उनकी विरासतों के बारे में अधिक दिलचस्प जानकारी प्राप्त करने के लिए हमसे जुड़ें, अपना विचार हमसे लगातार साझा करें और हमें फॉलो भी जरूर करें..